Saturday 25 April 2015

प्रात: स्मरामि मन्त्र

प्रात: स्मरामि मन्त्र​: ​

करावलोकन​--

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम​॥

पृथ्वी वंदना --

समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि ! नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे॥

प्रात​: स्मरणीय श्लोक —

श्रीगणेश​ जी --

प्रात​: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपुरपरिशोभितगण्डयुग्मम्।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादिसुरनायकवृन्दन्द्दम्॥

श्रीविष्णु --

प्रात​: स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम्।
महाभिभृतवरवारणमुक्तिहेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम्॥

शंकर भगवान --

प्रात: स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गड़्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाड़्गशूलवरदाभयहस्तमीश संसाररोगहरमौषध्म्द्वितीयम्॥

दुर्गा देवी ---

प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभाम सद्रत्नवन्मकरकुण्ड्लहारशोभाम ।
दिव्यायुधार्जितसुनीलसस्रहस्ताम रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम्॥

सूर्य​--

प्रात​: स्मरामि खलु तत्सुवितुर्वरेण्यम रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।
सामानि यस्य किरणा: प्रभवादिहेतुं ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्॥

नवग्रह​—

ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च​।
गुरुश्च शुक्र​: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

ऋषि --

भृगुर्वसिष्ठ​: क्रतुरड़्गिराश्च मनु: पुलस्त्य​: पुलहश्च गौतम​:।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्ष​: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

प्रकृति --

पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथाप​: स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेज​:।
नभ​: सशब्दं महसा सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

भगवती लक्ष्मी --

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्‍नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्‍च पद्‌मावती ॥

श्री बजरंग बाण

॥श्री बजरंग बाण॥

दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई :

जय हनुमंत संत हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै।
आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा।
सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका।
मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा।
अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा।
लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई।
जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी।
कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता।
आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर।
सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले।
बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता।
शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक।
राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर।
अग्नि बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की।
राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै।
राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा।
दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं।
तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ।
ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा।
सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं।
यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई।
पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल।
ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ।
सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै।
ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की।
हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं।
तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा।
ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा :

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥