Thursday 14 May 2015

हालात

बदन है पसीने से तर-बतर
थकान भरा दिन का सफर
शाम को जब आता हूँ घर पर
असंतोष के भाव होते है चेहरे पर।
धीरे-धीरे रात की काली चादर गहराती है
सारी हलचलें खामोशी में तब्दील हो जाती है
कोई नजर नहीं आता,गलियां सूनी पड़ जाती है
जब नींद सबको स्वपन लोक की सैर कराती है।
मैं भी अपने दड़बे में चुपचाप लेट जाता हूँ
आँखें मूंदकर सोने का प्रयास करता हूँ
मन ही मन हालातों की पेचीदगी का आकलन करता हूँ
अंधकार में डूबे अपने भविष्य की फिक्र करता हूँ।
तब नींद रूठकर उल्टे पांव वापस चली जाती है
सन्नाटा तोड़ती धड़कन की आवाज कानों में टकराती है
चिन्ताएं साथ छोड़ती नहीं, परेशानियां कभी घटती नहीं
भयानक दानव की तरह मजबूरियां पीछे हटती नहीं।

-- उमराव सिंह राजपूत (Umrav Jan Sikar)

Wednesday 13 May 2015

बिल्ली पहरेदार

बिल्ली पहरेदार

न्यायालय की बात का, सब करते सम्मान।
तन्त्र यहाँ भी रुग्ण है, निर्धन का अपमान।।

राशि जमानत की नहीं, भोग रहे हैं जेल।
देखा सबने न्याय का, पैसों के संग खेल।।

मन्दिर जो इन्साफ का, रग रग भ्रष्टाचार।
दूध भला कैसे बचे, बिल्ली पहरेदार।।

अधिवक्ता जितने बडे, उतना ज्यादा दाम।
बस पैसे पर न्याय है, निर्धन के बल राम।।

दौलत के आगे सुमन, झुकने का दस्तूर।
पत्रकारिता भी झुकी, न्यायालय मजबूर।।

--- श्यामल 'सुमन'

Friday 1 May 2015

श्री हनुमानाष्टक

बाल समय रवि भक्ष लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अँधियारो
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो
देवन आनि करी विनती तब,
छांड़ि दियो रवि कष्ट निहारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥1॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो
चौंकि महामुनि शाप दियो तब,
चाहिये कौन विचार विचारो
कै द्घिज रुप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के शोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो
जीवत न बचिहों हम सों जु,
बिना सुधि लाए इहां पगु धारो
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया सुधि प्राण उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥
रावण त्रास दई सिय को तब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,
दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥
बाण लग्यो उर लक्ष्मण के तब,
प्राण तजे सुत रावण मारो
लै गृह वैघ सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु–बीर उपारो
आनि संजीवनी हाथ दई तब,
लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥
रावण युद्घ अजान कियो तब,
नाग की फांस सबै सिर डारो
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बन्धन काटि सुत्रास निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥
बन्धु समेत जबै अहिरावण,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मंत्र विचारो
जाय सहाय भयो तबही,
अहिरावण सैन्य समैत संहारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि विचारो
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसो नहिं जात है टारो
बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ।