इस बार दीवाली पर आ जाओ,
तुम आओ तो कुछ सुकून मिले।
निगाहें तरस रही है बरसों से,
तुम आओ तो इन्हे ठण्डक मिले।
कभी गमों से राहत मिली नहीं
अब जीने की चाहत रही नहीं,
बस रुखसत होने से पहले
इक बार तो तुम्हारी झलक मिले।
खिलते फूलों की खुशबू ने,
फिर से मुझे झकझोर दिया,
है इन्तजार तुम्हारे आने का
आओ तो जीवन में महक घुले।
तुम इस बार मिटा दो ये दूरी
कुछ समझो मेरी भी मजबूरी,
निराशाओं के काले साये में
तुम आओ तो आशा का दीप जले।
-- Umrav Jan Sikar
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