कुछ अजीब सा महसूस करता हूँ,
जब से मेरे ख्यालों में आई हो तुम।
मन का पंछी अठखेलियां करे, उड़-उड़ के गगन में,
फूल खिलने लगे है फिर से उजड़े हुए गुलशन में ।
हवाओं में पहले ऐसी खनक नहीं थी,
दिल की नगरी में ऐसी कभी रौनक नहीं थी।
बसन्त आया हर साल, मगर ऐसी बहार नहीं थी,
कोयल की कूक में सुरीली पुकार नहीं थी।
पेड़ों से लिपटी झूल रही लताएं,
मधुर ध्वनि करती बह रही सरिताएं।
हर चीज में नवीनता का अहसास करता हूँ,
जब से मेरे ख्यालों में आई हो तुम।
कुछ अजीब सा महसूस करता हूँ,
जब से मेरे ख्यालों में आई हो तुम।
-- Umrav Jan Sikar