वो दौर था पागलपन का
जब एक प्रेम-पुष्प
खिलकर दिल में महका
मुहब्बत को मैंने रब समझा।
अब समझदारी के दौर में
दिल की कोमलता मिट गई
भावनाओं की कद्र घट गई
स्वार्थपरता बढती गई
खुदगर्जी के ताने बुनता रहा
रिश्तों के धागे चटकते गये
उस दौर में जो हासिल हुआ
टूटकर सब बिखरते गये
तब थी मुहब्बत रब जैसी,
अब पैसा रब बन गया
हां मैं समझदार बन गया।
कितना अच्छा था
वो दौर पागलपन का..!!
-- उमराव सिंह राजपूत (Umrav Jan Sikar)
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