Monday 15 June 2015

खुशियाँ

खुशियां

मैं दोड़ता रहा हर तरफ
खुशियों की तलाश में,
लेकिन खुशियां कभी
हासिल हुई नहीं।
मैं हर बार पहुंचता
खुशियों के करीब,
पर पास जाते ही
खुशियां ओंझल होती गयी।
मेरी कल्पनाओं में खुशियां थी
स्वर्ग से सुख के समान,
वह मेरा भ्रम था।
मै देखता हूँ
कई दर्दों के नीचे
दबी हुई है हर खुशी।
अफसोस !
ज्यादा की उम्मीद में
मैं दूर होता गया
अपनी सीमित खुशियों से।
अब दिन रात एक किये बैठा हूँ
उन सीमित खुशियों को
पुन: हासिल करने के लिए।

-- उमराव सिंह राजपूत (Umrav Jan Sikar)

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