काश मेरे नर्म अहसासों से,
तेरे मन का दर्प पिघल जाता।
बंधे थे इक अदृश्य डोरी से,
वो रिश्ता तो आखिर बच जाता।
पतंगे की तरह जलकर मरा,
दीपक सी लौ कर पाता।
रुखसत होना ही था दुनिया से,
तेरे लिए तो कुछ कर पाता।
बरबाद तुमने ऐसे ही किया,
मैं खुद ही तबाह हो जाता।
स्वार्थों की बलि चढ़ाया मुझे,
तेरे लिए मैं खुद आहुत हो जाता।
गर मेरे दिल की सिसकियों से,
हृदय तेरा द्रवित हो जाता।
उम्र भर बेचैन रहा पर
अन्तिम नींद तो चैन की सो पाता।
-- Umrav Jan Sikar
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