" जिन्दगी की राहों में "
जिन्दगी की राहों में तरह-तरह के झमेले है
भीड़ है ख्वाहिशों की और हाथ में खाली थैले है।
एक मुसीबत मिटती नहीं, चार आफत और आन पड़े,
जीवन की गाड़ी को उलझनें जमकर पीछे धकेले है।
हर मोड़ पर यहां धूर्त बैठे है, पहन कर चोला शरीफों का,
सांपों को क्या दोष देना, यहां आदमी भी बहुत विषैले है।
मतलब वालों ने नहीं देखी, रिश्तों की नाजुकता को,
रिश्तों की आड़ में कइयों ने, खेल बेईमानी के खेले है।
मीठी वाणी बोलने वाले, पीठ पीछे है जहर उगलते,
सुख में साथी बहुत यहां पर, दुख में सिर्फ अकेले है।
कीमत वफा की क्या होती है, देखा बहुत करीब से,
भीतर तक कांप गया, ऐसे-ऐसे दांव अपनों ने खेले है।
-- Umrav Jan Sikar
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