बरसों बीत गये इस इन्तजार में
कि ये अन्धेरी रात गुजर जाएगी।
लालिमा बिखेरती सुबह की किरण,
जीवन में नया संचार लाएगी।
बस यही आस लिए उदास मन को
सांत्वना देता रहा कि
पतझड़ के बाद ...
बसन्त की बहार आएगी।
वीरान हुए इस चमन में
फूल खिलेंगे फिर से,
सूनी सी इन आंखों में
सतरंगी रौनक आएगी।
क्यों थक चुका हूँ इतना कि
तन साथ नहीं देता मेरा,
लगता है ये काली रात
अब गुजर नहीं पायेगी।
क्यों उखड़ने लगी है सांसे मेरी,
ऐ मेरे दिल !
क्या डोरी इन सांसों की टूट जाएगी।
सो चुका था जमीर मेरा
बरसों बीत गये,
लगता है जैसे अब बारी मेरी आएगी।
गम है इतना कि जहां में ...
'कोई' मेरा हो न सका,
ये आरजू मेरे मन की
मन में ही रह जाएगी...!!
✒ Umrav Jan Sikar
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