Umrav Jan Sikar
Tuesday 13 January 2015
Happy sakranti.
यूँ तो हवा के रुख को समझती है पतंगें, फिर भी बुरे हालत से लड़ती है पतंगें, कटती है, उतरती है और चढ़ती है पतंगें, उम्मीद के धागे से ही बढ़ती है पतंगें, गिरती है, सम्हलती है, मचलती है पतंगें, बेखौफ तमन्नाओं सी उड़ती है पतंगे....
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