Thursday 8 January 2015

Swami Vivekanand

हम  जो  बोते  हैं  वो  काटते  हैं . हम  स्वयं  अपने  भाग्य   के  विधाता  हैं . हवा  बह  रही  है ; वो  जहाज  जिनके  पाल  खुले  हैं , इससे टकराते  हैं , और  अपनी  दिशा  में  आगे  बढ़ते  हैं , पर  जिनके  पाल  बंधे  हैं हवा  को  नहीं  पकड़  पाते . क्या  यह  हवा  की  गलती  है ?…..हम  खुद  अपना  भाग्य   बनाते  हैं .

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