हम जो बोते हैं वो काटते हैं . हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं . हवा बह रही है ; वो जहाज जिनके पाल खुले हैं , इससे टकराते हैं , और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं , पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते . क्या यह हवा की गलती है ?…..हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं .
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