Sunday 2 August 2015

हम पंछी थे एक डाल के

"हम पंछी थे एक डाल के "

हम पंछी थे एक डाल के.
हवा चली और छूट गए 
मेरे सपने टूट गए ........

अपना मुझे बताने वाले ,
हँस-हंसकर अपनाने वाले !
यादों की खुशबू-सा बनकर,
प्राणों में बस जाने वाले !
जीवन के किस पथ पर
जाने- मुझसे,मुझको लूट गए  ! 
मेरे सपने टूट गए .....

रोज समय की सही समीक्षा ,
मगर प्राण में पली प्रतीक्षा !
संघर्षों  के शूल संजोये ,
बार - बार दी अग्नि परिक्षा !
हारा सच्चा प्यार हमारा ,
जीत हजारों झूठ गए !
मेरे सपने टूट गए .....

आज अकेलापन खलता है ,
पल-पल मन-आँगन जलता है !
आशाओं का सूरज उगता ,
उगता नही ,सिर्फ ढलता है !
शेष रह गये  गीत अभागे ,
जो अधरों से फूट गए !
मेरे सपने टूट गए ....

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