"हम पंछी थे एक डाल के "
हम पंछी थे एक डाल के.
हवा चली और छूट गए
मेरे सपने टूट गए ........
अपना मुझे बताने वाले ,
हँस-हंसकर अपनाने वाले !
यादों की खुशबू-सा बनकर,
प्राणों में बस जाने वाले !
जीवन के किस पथ पर
जाने- मुझसे,मुझको लूट गए !
मेरे सपने टूट गए .....
रोज समय की सही समीक्षा ,
मगर प्राण में पली प्रतीक्षा !
संघर्षों के शूल संजोये ,
बार - बार दी अग्नि परिक्षा !
हारा सच्चा प्यार हमारा ,
जीत हजारों झूठ गए !
मेरे सपने टूट गए .....
आज अकेलापन खलता है ,
पल-पल मन-आँगन जलता है !
आशाओं का सूरज उगता ,
उगता नही ,सिर्फ ढलता है !
शेष रह गये गीत अभागे ,
जो अधरों से फूट गए !
मेरे सपने टूट गए ....
No comments:
Post a Comment