Wednesday 12 August 2015

गंतव्य

'गंतव्य'

यूं तो हरेक की तमन्ना होती है, नई बुलन्दियां छुने में,
मगर हर कोई सफल नहीं होता, अपना गंतव्य पाने में।
कोई राह से जाता है भटक कि राह नजर नहीं आती,
कोई जंजाल में जाता है अटक कि मंजिल दिखाई नहीं देती।
           मगर चले थे तब मन में जोश भी था,
           गंतव्य पाने का पूरा होश भी था।
लेकिन वक्त के थपेड़ों में यह सब बह गया,
जीवन के उतार-चढ़ाव में ही मन उलझ कर रह गया।
विचलित वे भी हुए मगर निराशा में भी आशा का संचार रखा,
जोश उनका भी टूटा लेकिन अपना हौसला बरकरार रखा।
कल वे मंजिल से कुछ दूर थे, आज उनके पास है,
और कल उसे पा ही लेंगे, यह उनका विश्वास है।
         क्योंकि उनके इरादों में अटलता है,
         और उनके हौसलों में दृढ़ता है।
कहना है उनका कि केवल सोचने से ही कुछ हो नहीं पाता,
क्योंकि सोते हुए शेर के मुंह में हिरण कभी चलकर नहीं आता।

-- Umrav Jan Sikar

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