Wednesday 12 August 2015

जालिम

जालिम

तेरी मुस्कान से जालिम, धोखे खाए है हमने।
अपने आँसुओं के मोती, खूब लुटाए है हमने।

दोस्ताने रवैये से अहसास दिलाया अपनों-सा,
फिर कैसे-कैसे जालिम, गुल खिलाए है तुमने।

मिठास घोलती बातों से छोड़े हंसी के फुहारे,
शिकारी की मानिंद नजरे-तीर चलाए है तुमने।

दर-दर भटके हम, डगर पकड़ी मयखाने की,
बेहयाई के तेवर जबसे दिखाए है तुमने।

भूल कर भी हमने दिल ना दुखाया जिनका,
उसी हरजाई से गहरे जख्म खाए है हमने।

 -- Umrav Jan Sikar

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