जालिम
तेरी मुस्कान से जालिम, धोखे खाए है हमने।
अपने आँसुओं के मोती, खूब लुटाए है हमने।
दोस्ताने रवैये से अहसास दिलाया अपनों-सा,
फिर कैसे-कैसे जालिम, गुल खिलाए है तुमने।
मिठास घोलती बातों से छोड़े हंसी के फुहारे,
शिकारी की मानिंद नजरे-तीर चलाए है तुमने।
दर-दर भटके हम, डगर पकड़ी मयखाने की,
बेहयाई के तेवर जबसे दिखाए है तुमने।
भूल कर भी हमने दिल ना दुखाया जिनका,
उसी हरजाई से गहरे जख्म खाए है हमने।
-- Umrav Jan Sikar
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